सहज योग ध्यान – क्या आप ध्यान मार्ग में उन्नति कर रहे है?

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“सहज योगी की पहचान” 


सहज योगी तो सहज योगी ही है, चाहे उसका कोई तिरस्कार करें, चाहे कोई उसको प्यार करें, चाहे कोई उसको अनदेखा करें या छोड़ दे, चाहे उसको अपनाए, चाहे कोई उसके प्रति उदार हो या नहीं। वह स्थितप्रज्ञ (established enlighten), स्थिति से परे है, इन सब चीजों से उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
वह इन सब के शीर्ष पर है।
वह आनंद की उस नाव पर बैठा, उसके साथ रह रहा है।
कोई भी परिस्थिति उसे प्रभावित नहीं कर सकती। यह पहचान है सहजयोगी की,अगर आपके आनंद को प्रभावित किया जा सकता है तो मतलब यह है कि अब कि आप अभी तक सहजयोगी नहीं हुए हैं। 

क्या आप उन्नति कर रहे हैं ?

पूर्ण समर्पित दिमाग के साथ आपको इस किले की तीर्थ यात्रा पर जाना है। यह तपों की एक झलक है। आपको यही करना होगा क्योंकि मैंने (श्री माताजी) बताया है। आप में से कुछ को मुसीबत या तकलीफ भी हो सकती है। आपको यात्रा के रास्ते में कुछ मुश्किल भी झेलनी होगी, परंतु यह सब मजाक सम होगी और आपको ऐसे स्थान से जाना होगा जहां पर प्रेत आदि नहीं जा सकते हैं।

1 यदि आप इन मुसीबतों को मजाक समझते हैं तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।

 2 यदि आप स्वतः ही बुद्धिमान बन जाते हैं तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।

 3 यदि आप शांत स्वभाव (सबूरी) हो जाते हैं और आपका गुस्सा शांत हो जाता है, जब आप पर कोई व्यक्ति आक्रमण करता है, तो आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।

  4 यदि आप पर कठिन परीक्षा (मुसीबत) आती है और आप इसकी चिंता नहीं करते, तब आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।

5 यदि कोई बनावटी वस्तु आपको आकर्षित नहीं करती और ना ही दूसरों की भौतिक वस्तुओं को देखकर आप प्रभावित होते हैं, तब आपको जानना है कि आप उन्नति कर रहे हैं।

  6 सहज योगी बनने के लिए कोई मेहनत या मुश्किल नहीं होनी चाहिए, जब भी आप चाहे आप सहजयोगी बन सकते है।  जब आप बिना प्रयास के प्राप्त करते हैं तब आप विशेष हैं। जब आप समझते हैं कि आप विशेष हैं,तब आपको इस का आदर करना है। यह घटना घटी है और आप इसके प्रति नतमस्तक हैं। जब आपके पास कुछ शक्ति होती है, आप अबोध होते हैं, आप बुद्धिमान होते हैं, आप दयालु होते हैं और मधुर वाणी वाले होते हैं,  तब आपको विश्वास करना चाहिए कि आप अपनी मां (श्री माताजी) के हृदय में होते हैं। जब नया सहज योगी नई शक्ति द्वारा चलता है, तो बहुत जल्दी विकसित होता है, तब आप बिना ध्यान के भी ध्यान में होते हैं मेरी (श्री माताजी की उपस्थिति के बिना भी आप मेरी (श्रीमाता जी) की उपस्थिति में होते हैं, तब आप बिना मांगे अपने परम पिता परमेश्वर से आशीर्वादित होते हैं।

 7 अंतर अवलोकन करें, क्या आप ध्यानस्थ हो रहे हैं। 

 8 क्या कोई खराबी हमें महसूस हो रही है? कौन सा चक्र पकड़ रहा है?

9 क्या चैतन्य लहरियों की अनुभूति कर रहे हैं?

10 अवलोकन करें तथा स्वयं की कमियां निकालें।

 11 हमारा चित् हमारी दुर्बलता पर होना चाहिए, ना कि अच्छाई या उपलब्धियों पर।

 12 सर्वप्रथम यह देखना है कि हमारा हृदय चक्र साफ है या नहीं?

  13 देखना है कि हमारे अंदर बदलाव हो रहा है, क्या हम गहराई प्राप्त कर रहे हैं?

14ध्यान में अगर आंखें फड़फड़ा रही हैं तो समझ लीजिए आपकी आज्ञा पर चोट हो रही है।

15 अगर आपका शरीर हिल रहा है, तो समझ लीजिए आप के मूलाधर पर कोई चोट हो रही है।

 16 अगर आपके हाथ थरथरा रहे हैं, तो समझ लीजिए कि आपमें बहुत बड़ी खराबी आ गई है, उसे जूता मार कर ठीक कर लेना चाहिए।

  17 आप ध्यान में एक दूसरे को समझ सकते हैं, अगर उसका आज्ञा चक्र पकड़ा है तो हृदय चक्र पकड़ा है, इसलिए स्वर ठीक से नहीं निकलते हैं।

 18 हम चिंतन के माध्यम से हमारी गहराई का आंकलन कर सकते हैं।

  19 किसी बात की चर्चा करते समय समझना चाहिए, कि कुंडलिनी कहां जा रही है। अन्य चर्चाएं व्यर्थ हैं, हम धर्म में कहां तक जागरूक हो गए हैं, हम धर्म में कितना पा रहे हैं, कितना परमात्मा का आनंद लूट रहे हैं, यही आपस में बताना है, बाकी सभी व्यर्थ है, बल्कि सभी बातों पर मौन रहे तो अच्छी बात है।

  20 जब आप इस प्रकार के सहजयोगी हो जाएंगे, तब बहुत बड़ा अंतर हो जाएगा। बहुत बड़ा प्रतिबिंब आपके द्वारा फैलने वाला है। यही प्रतिबिंब सभी में फैलने वाला है। सहज योग, मंत्र उच्चारण संगीत आदि से नहीं होने वाला है।

  21 क्या हमारा आभामंडल प्रकाशित हो रहा है?

  22 क्या हमारी हथेलियों की चमड़ी कोमल, पतली या लचीली महसूस हो रही है।

23 क्या हम हमारे नाड़ी तंत्र पर चक्रों को  अंतरतम में महसूस कर रहे हैं?

 24 क्या हम जानते हैं कि अहंकार एवं प्रति अहंकार का शरीर पर किस प्रकार का अनुभव आता है एवं उसे कैसे दूर किया जा सकता है?

 25 क्या आप निरंतर बलवंतर एवं परिपक्व हो रहे हैं?

सहज योग में गहराई पाने हेतु सुझाव 


(आध्यात्मिक उत्थान में गहराई पाएं) ध्यान का उद्देश्य- जानना, करना एवं बनना है।

1) प्रतिदिन सुबह-शाम ध्यान द्वारा आध्यात्मिक गहराई संभव।ध्यान धारणा, प्रातः 4:00 से 6:00 बजे करने से सफाई अधिक होती है। ध्यान का अर्थ मां के प्रति समर्पण।  समर्पण में अहंकार, प्रति अहंकार एवं अन्य सभी का समर्पण भाव। केवल श्रद्धा एवं भक्ति से ही गहराई मिलेगी। सामूहिकता में ध्यान करने से आध्यात्मिक उत्थान होता है।  

2)पूर्ण हृदय को खोलना, हृदय में भक्ति एवं श्रद्धा से श्री माता जी के चरण कमल स्थापित करना। हमेशा ध्यान रखना कि मां कब खुश होती हैं। जैसे ही ह्रदय मे प्रेम तत्व भर जाता है, प्रेम से कहना- निर्वाजय प्रेम से कि हमें कुछ नहीं चाहिए, केवल आत्म दर्शन चाहिए। सहज योग को हृदय से करना है, मस्तिष्क से नहीं। मां के प्रति भावना। आपकी भावना से ही सी श्रीमाताजी प्रसन्न होती हैं। अनुभव, जानना एवं समझना (मां पर विश्वास,) अपने आप पर विश्वास एवं चैतन्य लहरियों पर विश्वास। जब हृदय खुलता है तो सहस्त्रार खुलता है।  (शून्य शिखर पर अनहद बाजे) अपने हृदय को 100% खोलें।
 
3) प्रतिदिन श्री माताजी की वीडियो /कैसेट चित् चैतन्य पर रखते हुए सुने।
 
4) प्रतिदिन जल क्रिया अवश्य करें।

  5) पृथ्वी तत्व उपयोग करके अपनी सफाई करें। नंगे पैर पृथ्वी पर घूमना।बैठकर गणेश अथर्वशीर्ष करना चाहिए। जितना अच्छा मूलाधार होगा  उतना ही आध्यात्मिक उत्थान गहरा होगा।

 6) चित् की निगरानी रखें,  चित् कहाँ है, सतर्क रहें आध्यात्मिकता को नापने का यंत्र है, चित्। अपने चित् को समेटे, चित् ही आप के अस्तित्व का चित्रपट है। चित् सदा आत्मा पर होना चाहिए। अपने चित् को चैतन्य में खुलना ही ध्यान है। आत्मा की और चित् रखने से चित् प्रकाशित हो जाता है। सब चित् का खेल है,   चित् शांत हो तो खुशी और अशांत हो तो उदासी। चित्त एकाग्र हो तो धारणा, भीतर स्थित हो तो समाधि। मां को इनाम में क्या दे सकते हो, मां खुश होती है, जब हम शुद्ध चित्त निर्मल मां को देते हैं। चित् का फैलाव एवं समेटने की आदत बना लेनी चाहिए। निष्क्रिय साधना, प्रयासहीन साधना, विचार शैथिल्य की प्रैक्टिस करें।

7) सभी की प्रशंसा, उत्साह, जागृति का भाव, आदर, इमानदारी, नए सहजयोगी को समझना, सहज योगियों का खाना बनाना। आप ही संभाव पैदा करें, आप से मिलकर, उसे खुशी व प्रसन्नता मिले।सहज योग की गहराई नापने का मंत्र है कि आप कितने प्रसन्न व आनंद में हैं। 
(तो अभी जो अवस्था है) वह चौथी अवस्था यानी तुर्या अवस्था है। चौथी अवस्था में आप तीनों गुणों पर शासन करते हैं, आप सभी तत्वों पर नियंत्रण रखते हैं। इस स्थिति में आप सिर्फ कहते हैं और काम हो जाता है।

 पांचवी स्थिति– फिर पांचवी स्थिति है  जैसे मैं नाम नहीं देना चाहती, क्योंकि आप उसी को पकड़ लेंगे। यह इतनी साफ बनी हुई नहीं है, यह एक दूसरे से संयुक्त हो जाते हैं और वे मिश्रण हैं लेकिन तुर्या अवस्था में जब आप पूरी तरह सिद्ध हो जाते हैं तो, आप पांचवी अवस्था में कूद पड़ते हैं। जहां आप कुछ नहीं करते, आप संकल्प भी नहीं करते हैं, आप कुछ निश्चित करते या कहते नहीं। कुछ आपके मुंह से निकल पड़ता है, या न भी निकले तो भी वह कार्य हो जाता है  वह एक अवस्था है वहां आप पूरी स्थिति को संभाल लेते हैं, यहां बैठे हुए।

 छठी अवस्था– इसमें यहां बैठे- बैठे आप हर चीज को जानते हैं, फिर आप उस पर अधिकारी होते हैं, लेकिन फिर भी आप उसके अंदर जा सकते हैं। अब उदाहरण में, मैं यह कहती हूं, मैं आपके अचेतन अवस्था  या सामूहिक अचेतन या अति चेतन अवस्था इन सभी भागों में जा सकती हूं अगर मैं चाहूं तो। यह तब होता है  जब आप इसके ऊपर परिपूर्णता से अधिकार पाते हैं फिर आप ही उसमे प्रवेश कर सकते हैं।  जब आप अधिकारी हैं,  तब आप प्रवेश करते हैं।  सातवी अवस्था- फिर आती है, एक सातवी अवस्था और वह ऐसी स्थिति है,  जहां सिर्फ आप है, आपकी उपस्थिति ही काफी है। सिर्फ वहां होना, कुछ नहीं होता है।सिर्फ आप अपने लिए हैं। अब आप इन सातों स्थिति तक पहुंच सकते हैं, कारण मैं उसके पार खड़ी हूं और मैं पहली स्थिति से आपको उठा कर आई हूं।

मैं आपको खींचकर बाहर निकालने की कोशिश कर रही हूं,अगर आप मुझे नहीं खीचेगे  तो मैं आपको बहुत जल्दी ऊपर उठा सकती हूं। 

परम पूज्य श्री माताजी ओल्ड ऑक्सफोर्ड सेमिनार यू.के.

अन्तर्वलोकन

अन्तर्वलेकन द्वारा अपने अन्दर झाँकने का प्रश्न अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अपनी चेतना को बेहतर करने का यह सर्वोत्तम उपाय है।

अगर आपका ध्यान नहीं लगता तो कुछ न कुछ खराबी हम में आ गयी है, कोई न कोई गड़बड़ी हमारे अंदर आ गई है, कोई ना विचार हमारे अन्दर आ गये है, उनको देखना चाहिये, जानना चाहिये, समझना चाहिए और सफाई करनी चाहिए इसी को अंतर दर्शन कहते हैं।

१. क्या मैं नियमित ध्यान करता हूँ?

२. क्या मुझे निर्विचारिता प्राप्त होती है?

३. चक्रों की स्वच्छता हेतु क्या मैं नियमित रूप से सारी उपाय योजना करता हूँ?
४. क्या मुझे ध्यान में शीतल लहरियाँ प्राप्त होती है?
५. दिनभर में कितनी बार मेरा ध्यान चैतन्य लहरियों पर जाता है?
६. दिन में कितना समय मेरा चित्त सहस्त्रार पर रहता है?
७. दिनभर में कितनी बार मुझे श्रीमाताजी का स्मरण होता है? “
८. क्या मुझे गुस्सा आता है?
६. क्या मुझे कभी निराशा लगती है?
१०. जय मैं कार्यरत नहीं होता हूँ तब मैं कितने समय निर्विचार रहता हूं?
११. क्या मैं श्रीमाताजी कें प्रवचन पढ़ता अथवा सुनता हूँ?
१२. क्या मैं सहजयोग से संबंधित साहित्य पढ़ता हूँ?
१३. दैनदिन व्यवहार एवं आचरण में क्या मुझे श्रीमाताजी के उपदेश स्मरण रहते हैं?
१४. श्रीमाताजी के उपदेश में से मैं कितनी बातों का प्रत्यक्ष व्यवहार एवं आचरण में अनुसरण करता हूं?
१५. जो बातें मैंने अभी तक व्यवहार-आचरण में नहीं लाई है, क्या मैं उसके लिए प्रयत्न कर रहा हूं?
१६. सहज योग में आने से पूर्व के मेरे संस्कार एवं अनिष्ट आदतें क्या अभी भी वैसी ही हैं?
१७. क्या मैं सहज योगी या औरों को क्षमा करता हूं?
१८. क्या मैं सहज योगी के दोष ढूंढ कर उन पर टीका टिप्पणी करता हूं?
१९. क्या मैं श्री माताजी द्वारा नियुक्त लीडर पर टीका टिप्पणी करता हूं?
२०. नियुक्त लीडर द्वारा दी गई सूचनाओं अनुसार क्या मैं आचरण करता हूं?
२१. शहर या राष्ट्रीय लीडर के कार्य संबंधी होने वाली टीकात्मक चर्चा मैं क्या मैं सहभागी होता हूं?
२२. क्या मैं सहज योगियों के साथ मिलना जुलना पसंद करता हूं?
२३. क्या मैं अपने शहर या केंद्र द्वारा आयोजित सहज योग के कार्यक्रमों में हिस्सा लेता हूं?
२४. क्या मैं केंद्र की सामूहिकता में खलल पैदा करने वाले सहज योगियों से मेलजोल पसंद करता हूं?
२५. क्या मैं केंद्र पर होने वाली सभी पूजाओं में उपस्थित रहता हूं?
२६. सहज योग के कार्य के लिए क्या मैं स्वेच्छा से आर्थिक सहायता करता हूं?
२७. क्या मैं सहज योग के कार्यक्रम आयोजित करने में सहायता करता हूं?
२८. जहां मुमकिन है, वहां मैं सहज योग की जानकारी देता हूं?
२९. क्या मैं नए आने वाले लोगों को जागृति देने में सहायक बनता हूं?
३०. सहजयोग के सार्वजनिक कार्यक्रमों में क्या मैं उपस्थित रहते हुए सहभागी बनता हूँ ?
३१. एक बार सहजयोग की जागृति देने के पश्चात नये आने वाले व्यक्ति को सहजयोग में प्रस्थापित होने के लिए क्या मैं सतत्‌ प्रयलशील एवं मददगार होता हूँ ?
३२. क्या मुझे शारीरिक कष्ट है और क्या मैं उसे सहजयोग की उपचार पद्धति से ठीक कर सकता हूं?
३३. प्रकृति के सौन्दय की ओर क्या मेरा ध्यान आकर्षित होता है?
३४. किसी कलाकृति को देखते समय क्या मुझमें निर्विचारिता आती है एवं चेतन लहरियों की अनुभूति आती है?
३५. शास्त्रीय संगीत सुनते समय क्या मुझे चैतन्य लहरियों की अनुभूति आती है?
३६. सहजयोगियों से बर्ताव के समय क्या मैं धर्म एवं जाति निरपेक्ष रहता हूं?
३७. वर्तमान भौतिक परिस्थितियों में क्या मुझे समाधान है?
३८.अपने कुटुग्ब एवं रिश्तेदारों में ही रम कर क्या मैं सहज योग की तरफ ध्यान नहीं देता हूँ ?
३६. क्या मैं सहजयोग के कार्य को प्रधानता देता हूँ ?
४०. अपने परिवार वालो से क्या मैं सहजयोग के तत्वों के‌ अनुसार प्रेम पूर्वक बर्ताव करता हूं और अपनी जवाबदारियों एवं कर्तव्यों का सही पालन करता हूं
४१. क्या मैं बच्चों को सहजयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं?
४२. प्रतिकूल परिस्थितियों में भी क्या मैं संतुलन में रह सकता हूं?
४३. निर्णय लेते समय क्या मैं चैतन्य लहरियों का उपयोग करता हूं?
४४.सहजयोग में स्वतः की उन्नति से अधिक क्या मैं भौतिक उन्नति के प्रति अधिक ध्यान देता हूं?
४५. सहजयोग में आने के पश्चात श्रीमाताजी की असीम कृपा से मुझे अनेक शक्तियां प्राप्त हुई हैं। क्या मैं इस उपलब्धि के लिए श्री माताजी के प्रति श्रद्धावान हूँ एवं क्या मुझे इसका एहसास है?
४६. क्या मुझे लगता है कि सहजयोग मेरी अपनी व्यक्तिगत उन्नति का मार्ग है?
४७. सहजयोग में उन्नति के लिए क्या मैं कोई भी कष्ट उठाने के लिए तैयार हूं?
४८. क्या मैं समझता हूँ कि मैं पुराना सहज योगी होने के कारण विशेष या सर्वज्ञ हूं?
४६. क्या मैं सहजयोग का प्रचार-प्रसार उत्साहपूर्वक एवं जागरूकता पूर्वक करता हूं?
५०. क्या मुझे इसका अभिमान है कि मैं सहयोगी हूं?

अपने को दृढ़ रखने के लिए पहला कार्य है अंतर दर्शन। प्रकाश को अंतस में प्रतिबिंबित करके स्वयं को देखना ही अंतर दर्शन है। आत्मा के प्रकाश में हम स्पष्ट देख सकते हैं कि हम में क्या दोष आ गए हैं? … एक मापदंड यह होना चाहिए कि हमने सहज योग के लिए क्या किया। परमात्मा के लिए कार्य करना ही महानतम कार्य है। यही सबसे महत्वपूर्ण सर्वोच्च उद्यम है जिसको करने का अवसर मानव को प्राप्त हुआ है। आपको पता लगाना है कि मुझे सहज योग के लिए क्यों चुना गया। अंतर दर्शन का यह दूसरा ..है।

परम पूज्य श्री माताजी
शुडी कैम्प, इंग्लैंड
३.८.१६८८


ध्यान करने की इच्छा जागृति

 
1. इच्छा 

• स्वयं के प्रति विश्वास
• ध्यान में विश्वास 

2. इच्छाओं की पूर्ति 


•सभी इच्छाओं की पूर्ति 
•सूक्ष्मता समाहित 
•समर्पण भाव प्रारंभ 
•मां के चैतन्य की अनुभूति 
•तर्क \विश्लेषण से परे 
•पूर्ण विश्वास के साथ समर्पण भाव 


3.  निर्विचारिता


• निर्विचार जागरूकता 
• चक्रो की पकड़ का कम प्रभाव
• संसाधनों की प्राप्ति
• निमित्त मात्र 
• असंलग्नता 
• ईश्वर प्राप्ति का भान 
• स्वयं में शक्तिशाली 
• नियम आचरण में पूर्ण आस्था 

4. गुणातीत


• तुर्या दशा 
• तीनों गुणों पर शासन (गुणातीत) 
• पांचों तत्वों पर नियंत्रण 
• कहने मात्र से कार्य संपन्न 
• तीनों नाड़ियों पर परम चैतन्य कार्यान्वित
 • ईश्वर के ब्रह्मचैतन्य की प्राप्ति के लिए उत्सुक
 • मां के फोटो में अधिक विश्वास 

5 . परिपक्वता प्राप्ति


• परिपक्वता प्राप्ति 
• तुर्या अवस्था
• संकल्प नहीं करते 
• मुख से निकली हर बात कार्यान्वित
• बैठने मात्र से सारी समस्याओं\ परिस्थिति का समाधान
 

6. सामूहिक अतिचेतन


• बैठे रहते हुए भी प्रत्येक चीज को जान पाते हैं
• किसी भी स्थान पर पहुंच सकते हैं
• परिपक्व अधिकारी होने पर सामूहिक अवचेतन\ सामूहिक अतिचेतन, सभी भागों में जा सकते हैं


 7.  आत्म संतुष्टि 


• जहां सिर्फ आप की उपस्थिति ही पर्याप्त है
• आत्म संतुष्टि 


7वीं अवस्था के बाद


•माॅ सातो अवस्था के बाद हैं
• मां हमें बाहर लाने का प्रयास कर कर रहीं हैं, प्रथम अवस्था में गिरा भी सकती हैं।

परिपक्वता का अर्थ (आदि शंकराचार्य)


 (1) परिपक्वता वह है जब   आप दूसरों को बदलने का प्रयास करना बंद कर दें, बजाय स्वयं बदलने पर ध्यान केंद्रित करें।
 (2)परिपक्वता वह है जब   आप दूसरों को जैसे हैं, वैसा ही स्वीकार करें।
( 3) परिपक्वता वह है जब   आप यह समझे कि प्रत्येक व्यक्ति, उसकी सोच के अनुसार सही है।
 (4) परिपक्वता वह है जब  आप जाने दो वाले सिद्धांत को सीख ले।
( 5 ) परिपक्वता वह है जब  आप रिश्तो से लेने की उम्मीदों को अलग कर दें और केवल देने की सोच रखें।
( 6 ) परिपक्वता पर है जब  आप यह समझ ले कि आप जो भी करते हैं वह आपकी स्वयं की शांति के लिए है।
 (7) परिपक्वता वह है जब  आप संसार को यह सिद्ध करना बंद कर दें कि आप कितने बुद्धिमान हैं।
 (8) परिपक्वता वह है जब  आप दूसरों से उनकी स्वीकृति लेना बंद कर दें।
 (9) परिपक्वता वह है जब  आप दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर दें।
( 10 ) परिपक्वता वह है जब  आप स्वयं में शांत हैं।
( 11 ) परिपक्वता वह है जब  आप जरूरतों और चाहतों के बीच का अंतर जानने में सक्षम हो जाएं और अपनी चाहतों को छोड़ने के लिए तैयार हो। 
(12) आप तब परिपक्वता प्राप्त करते हैं, जब आप अपनी खुशी को सांसारिक वस्तुओं से जोड़ना बंद कर दें।

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