सहज योग क्या है?

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सहज योग की खोज श्रीमती निर्मला श्रीवास्तव जी ने की, उन्हें ( श्री माता जी निर्मला देवी) के नाम से भी जाना जाता हैं। सहज योगा में कुंडलिनी जागरण व निर्विचार समाधि, मानसिक शांति से लोगों को आत्मबोध होता है और अपने आप को जानने में मद॒द मिलती है। माता निर्मला देवी द्वारा विकसित इस योग को मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद फायदेमंद है।

क्या है सहज योग ?

सहज योगा में आसान मुद्रा में बैठकर ध्यान किया जाता है। ध्यान के दौरान इसका अभ्यास करने वाले लोगों में सिर से लेकर हाथों तक में एक ठंडी हवा का एहसास होता है । चिकित्सकों ने सहज योगा के अन्य प्रभावों के बारे में भी बताया है। इस योग को करने से लोगों में शारीरिक व मानसिक तनाव से मुक्ति व आराम मिलता है। सहज योगा केवल एक क्रिया का नाम नहीं हैं, यह वह तकनीक भी हैजिससे लोगों को इसके बारे में जागरुक कराया गया है । यह मुख्य रुप से आत्म बोध का प्रचार है जिससे कुंडलिनी जागृत होती है जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आता है ।

प्रत्येक मनुष्य के शरीर में जन्म से ही एक सूक्ष्म तंत्र होता है। जिसमें तीन नाड़ियां,सात चक्र और परमात्मा की दी हुई शक्ति विद्यमान है। परमात्मा की यही शक्ति जो कि कुंडलिनी शक्ति के नाम से जानी जाती है,हमारी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले भाग में सुप्त अवस्था में रहती है। श्री माताजी निर्मला देवी द्वारा सहजयोग के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति की जागृति सहज में ही हो जाती है,और मनुष्य योग अवस्था को प्राप्त करता है।

यह योग परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जु़ड़ने का अत्यंत सरल मार्ग है|

गुरु नानक, संत ज्ञानेश्वर आदि महान ज्ञानियों के प्रवचन में सहज योग का उल्लेख मिलता है| सहज योग की मदद से कई लाइलाज बीमारियों से छुटकारा पाया जा सकता है| इससे मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक सभी तरह के लाभ शरीर को मिलते है|यह आत्मज्ञान को प्राप्त करने की बहुत ही सुलभ ध्यान पद्धति है। इस पद्धति को सीख कर हर इन्सान अपने हर कार्य को व अपने जीवन को सफल कर सकता है| इससे तनाव दूर होता है – इसका अभ्यास करने वाला व्यक्ति पूरा दिन उर्जा से परिपूर्ण होता है|

दरहसल जब भी ईश्वरीय शक्ति जागृत होती है, व्यक्ति का सृजनात्मक व्यक्तित्व व उत्तम स्वास्थ्य का विकास होने लगता है|

सहज योग के अर्थ को यदि हम विस्तृत करे तो ‘सह’ का अर्थ है हमारे साथ, ‘ज’ का अर्थ है पैदा हुआ और ‘योग’ का अर्थ है संघ।

मानव पर परमात्मा की कृपा बरसने लगती है, जिसके चलते उसकी अंतर्जात प्रतिभा खिल उठती है, वह तनाव युक्त जीवन पाता है साथ ही निःस्वार्थ प्रेम एवं आनंद में लिप्त हो जाता है|

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